Manipur Violence: हिंसा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से आखिर क्यों जल रहा है मणिपुर ?

मणिपुर, भारतीय मानचित्र के पूर्व-उत्तरी कोने में स्थित है। यहाँ की भौगोलिक स्थिति और क्षेत्रीय विभाजन इसे अनूठा बनाते हैं। मणिपुर का पूरा क्षेत्र विभिन्न पहाड़ी और मैदानी क्षेत्रों में बांटा हुआ है। यहाँ की मुख्य भूमि इंफाल घाटी है, जो मणिपुर की राजधानी इंफाल के आसपास फैली हुई है। इस घाटी में बहुतायत मैदान हैं जहाँ मुख्यतः मैतेई जाति के लोग निवास करते हैं।

मणिपुर, भारतीय मानचित्र

मणिपुर का कुल क्षेत्र का लगभग 10% घाटी (मैदान) है, जबकि बाकी 90% क्षेत्र पहाड़ी इलाके से घिरा है। इस भौगोलिक विवरण के कारण, मणिपुर का सामाजिक और आर्थिक जीवन भी भिन्न-भिन्न तरीके से प्रभावित होता है। पहाड़ी क्षेत्र में अधिकांशतः कूकी और नागा जनजातियाँ निवास करती हैं, जो अपनी संस्कृति, भाषा, और पारंपरिक जीवनशैली में अलग-अलग हैं।

मणिपुर के इस समाजिक विभाजन ने उसके राजनीतिक और सामाजिक संरचना को प्रभावित किया है। मैदानी क्षेत्र में बसे मैतेई लोगों और पहाड़ी क्षेत्र में निवास करने वाले कूकी और नागा जनजातियों के बीच विवाद और संघर्ष भी समय-समय पर देखे गए हैं। इस समाजिक संघर्ष का एक प्रमुख कारण भी धर्म, सांस्कृतिक अंतर, और समाजिक असमंजस है।

कंगलाईपाक से मणिपुर तक

1709 में, मणिपुर को कंगलाईपाक कहा जाता था। यहाँ मैतेई लोग रहते थे और उनके राजा थे पम्हेइबा। पम्हेइबा कंगलाईपाक, यानी मणिपुर के राजा थे। पम्हेइबा भी एक मैतेई थे, लेकिन कुछ समय बाद, वह शांतिदास नामक एक उपदेशक के संपर्क में आए और फिर उन्होंने हिंदू धर्म अपनाया। हिंदू धर्म अपनाने के बाद, सबसे पहले उन्होंने कंगलाईपाक का नाम बदलकर संस्कृत में मणिपुर कर दिया। उसके बाद, उन्होंने अपना नाम पम्हेइबा से बदलकर गरीब नवाज कर लिया और मणिपुर का राज्य धर्म हिंदू धर्म कर दिया। इन सबके बाद, उन्होंने मणिपुर राज्य का विस्तार करना शुरू किया।

मैतेई समुदाय

मणिपुर का विस्तार और बर्मा के हमले

मणिपुर के पास बर्मा का राज्य था, जिसे अब म्यांमार कहा जाता है। पम्हेइबा ने बर्मा के राज्य पर कई बार हमला किया और बर्मा को मणिपुर से जोड़ा। मणिपुर हो या म्यांमार, यह सभी पहाड़ी क्षेत्र हैं। और इन सभी क्षेत्रों में उस समय कई जनजातियाँ रहती थीं। जनजातियाँ लगातार स्थान बदलती रहती थीं। उदाहरण के लिए, अगर कोई जनजाति जंगल क्षेत्र में रह रही है, तो जब उस क्षेत्र के संसाधन खत्म हो जाते हैं, तो वह जनजाति स्थान बदल देती है। इस प्रकार, मणिपुर की जनजातियाँ मणिपुर के आसपास के क्षेत्रों में भी पाई जाती हैं, जैसे म्यांमार आदि में।

13 दिसंबर 1751 को पम्हेइबा की मृत्यु हो गई और उनके निधन के बाद, मणिपुर राज्य कमजोर हो गया। इसका फायदा उठाते हुए, धीरे-धीरे बर्मा ने मणिपुर पर हमले शुरू कर दिए और छोटे-छोटे क्षेत्रों पर कब्जा करना शुरू कर दिया। फिर 1819 में, बर्मा ने मणिपुर राज्य पर पूरी तरह से कब्जा कर लिया। इस समय मणिपुर के लोग मिजोरम, असम, त्रिपुरा आदि क्षेत्रों में पलायन कर रहे थे। आज भी इन क्षेत्रों में कूकी, नागा, मैतेई सभी जनसंख्या मिलती है।

कूकी

इसके बाद, अगले 5 वर्षों तक मणिपुर में यही स्थिति बनी रही। फिर 1824 में, मणिपुर के राजा गम्भीर सिंह ने अंग्रेजों से मदद मांगी। उन्होंने कहा कि बर्मा हम पर बहुत हमले कर रहा है और आप हमारी मदद करें। रणनीतिक रूप से मणिपुर का स्थान अंग्रेजों के लिए बहुत महत्वपूर्ण था, इसलिए अंग्रेजों ने इस पर सहमति जताई। दो साल की लड़ाई के बाद, फरवरी 1826 में, अंग्रेजों ने बर्मा की सेना को हराकर मणिपुर से बाहर निकाल दिया। इस समय को मणिपुर में चही तारत खुनताकपा यानी 7 साल की तबाही के रूप में जाना जाता है।

नागा

अंग्रेजों ने मणिपुर की मदद मुफ्त में नहीं की थी। अंग्रेजों ने मणिपुर के राजा को राजा बने रहने दिया, लेकिन मणिपुर का नियंत्रण अपने हाथ में रखा और कर वसूलते रहे। अंग्रेजों ने दो तरीकों से शासन किया: पहला, उन्होंने पूरे राज्य को अपने नियंत्रण में ले लिया या उन्होंने राजा को राजा बने रहने दिया और परोक्ष रूप से शासन किया।

Manipur Violence: औपनिवेशिक काल और विभाजन

अंग्रेजों ने अपने अधिकारियों को राजा का सलाहकार बना दिया। इस व्यवस्था को रियासत कहा जाता है। मणिपुर भी एक रियासत था। अंग्रेजों का शासन का एक तरीका था। वे मैदानी इलाकों में शासन करते थे और पहाड़ियों को ऐसे ही छोड़ देते थे क्योंकि पहाड़ियों में सेना को नियंत्रित करना मुश्किल था। दूसरी बात, अंग्रेज मैदानी इलाकों में अधिक आर्थिक गतिविधियाँ कर सकते थे।

मणिपुर में, अंग्रेजों ने मैदानी क्षेत्र को पहाड़ियों से अलग कर दिया। पहाड़ियों और मैदानी इलाकों के बीच कोई सीमा नहीं थी। उन्होंने बस जनजातियों को परेशान नहीं किया और मैदानी इलाकों पर नियंत्रण रखा। अंग्रेजों द्वारा की गई यह चीज मणिपुर में आज की हिंसा का पहला कारण है।

अंग्रेजों का विभाजन और जनजातीय संरचना

मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्र में कई जनजातियाँ थीं। इन जनजातियों को अलग-अलग नाम दिए गए। मणिपुर के मैदानी क्षेत्र में मैतेई लोग रहते थे। पहाड़ियों में रहने वाली जनजातियाँ कई थीं, जिन्हें अंग्रेजों ने पहली बार कूकी कहा। कूकी में कई जनजातियाँ शामिल थीं। और म्यांमार की ओर रहने वाली जनजातियों को चिन कहा गया। इसी तरह, मणिपुर की पहाड़ियों में रहने वाली जनजातियों को मुख्यतः नागा कहा जाता था।

अंग्रेजों का विभाजन और जनजातीय संरचना

इस प्रकार, मणिपुर में तीन मुख्य समूह बने: मैतेई, कूकी और नागा। कूकी की जनसंख्या मणिपुर के बाहर की पहाड़ियों में भी थी। इसी तरह, नागा की जनसंख्या नागालैंड के बाहर की पहाड़ियों में भी थी।

जनजातीय असहमति और संघर्ष

मैतेई की बात करें तो, जब बर्मा ने हमला किया, तब सभी मैतेई मिजोरम, त्रिपुरा और इस ओर चले गए। इसलिए आज भी इन राज्यों में उनकी जनसंख्या है। कुल मिलाकर, तीनों जनजातियों की जनसंख्या केवल मणिपुर तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पड़ोसी राज्यों में भी पाई जाती है। इन तीनों में आपस में बहुत असहमति है कि कौन पहले आया और कौन बाद में।

मैतेई कहते हैं कि 1891 में अंग्रेजों ने पहाड़ियों और मैदानी इलाकों को कृत्रिम रूप से अलग किया ताकि वे शासन कर सकें। अन्यथा, मणिपुर की पहाड़ियाँ और मैदान दोनों हमारे पूर्वजों के हैं। मैतेई कहते हैं कि कूकी 18वीं और 19वीं सदी में म्यांमार से आए थे।

इसी तरह, कूकी कहते हैं कि यह पूरा क्षेत्र हमारा है। यहाँ हमारी जनजातियाँ हैं और हम लंबे समय से यहाँ रह रहे हैं। नागा भी कहते हैं कि हमारी जनजातियाँ लंबे समय से इस क्षेत्र में रह रही हैं, इसलिए यह क्षेत्र हमारा है।

Manipur Violence:एंग्लो-कूकी युद्ध

1914 में प्रथम विश्व युद्ध शुरू होता है और अंग्रेज मणिपुर से 2000 सैनिकों को अपनी ओर से लड़ने के लिए ले जाते हैं। अंग्रेजों ने कूकी जनजाति को भी लेने की कोशिश की क्योंकि वे युद्ध में बहुत कुशल थे, लेकिन कूकी ने अंग्रेजों के लिए लड़ने से इनकार कर दिया। इससे अंग्रेज उनसे नाराज हो गए और उन पर हमला कर दिया। यह लड़ाई लंबे समय तक चली और कूकी को भी काफी नुकसान हुआ, लेकिन अंततः अंग्रेजों ने कूकी को हरा दिया। इस लड़ाई को एंग्लो-कूकी युद्ध भी कहा जाता है।

एंग्लो-कूकी युद्ध

कूकी जनजाति का धर्मांतरण

युद्ध जीतने के बाद भी कूकी पर नियंत्रण करना आसान नहीं था। अंग्रेजों ने उन्हें सामाजिक रूप से शामिल करने के लिए एक रणनीति बनाई और कूकी क्षेत्र में ईसाई मिशनरियों को भेजा। इसी समय कूकी ईसाई बने। आज भी कूकी की अधिकांश आबादी ईसाई है। वहीं, मैतेई लोग अपने राजा के कारण हिंदू हैं।

द्वितीय विश्व युद्ध और मणिपुर की स्वतंत्रता की दिशा
समय बीतता गया और द्वितीय विश्व युद्ध का समय आया। इस समय मणिपुर के लोगों को यह अहसास हुआ कि अंग्रेज यहां से जाने वाले हैं। अंग्रेजों ने उत्तर-पूर्व की आबादी को अप्रत्यक्ष रूप से संकेत दिया कि वे अलग रहेंगे और उनका विलय नहीं होगा। इस समय, अंग्रेजों ने मणिपुर नहीं छोड़ा था, लेकिन वे जाने की बात कर रहे थे। उस समय मणिपुर के राजा, राजा बोधचंद्र सिंह पर मणिपुर के लोगों ने बहुत दबाव डाला कि वे मणिपुर के लोगों को सत्ता दें और लोकतंत्र लाएं।

मणिपुर राज्य संविधान अधिनियम और स्वतंत्रता
26 जुलाई 1947 को राजा बोधचंद्र सिंह ने मणिपुर के लिए मणिपुर राज्य संविधान अधिनियम, 1947 लाया। इसके एक महीने बाद, अगस्त 1947 में, अंग्रेज सब कुछ छोड़कर वापस चले गए। जैसा कि मैंने पहले बताया, अंग्रेजों ने राज्यों पर दो तरीकों से शासन किया था। एक तरीके से वे सीधे राज्य पर शासन करते थे और दूसरे तरीके से वे राजा के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से शासन करते थे।

राजा बोधचंद्र सिंह ने मणिपुर

मणिपुर का भारत में विलय

जब भारत को स्वतंत्रता मिली, तो एक समझौता हुआ कि जहाँ अंग्रेज सीधे शासन कर रहे थे, वे भारत के सीधे नियंत्रण में आ जाएंगे। लेकिन जहाँ वे सीधे शासन नहीं कर रहे थे, यानी वे राजा के माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से शासन कर रहे थे, जिसे रियासत कहा जाता है, वहाँ एक इंन्स्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन पर हस्ताक्षर होंगे जिसमें राज्य खुद को चलाएगा। केवल रक्षा, विदेश मामले और संचार भारत देखेगा। मणिपुर भी एक रियासत था, इसलिए यहाँ भी इंन्स्ट्रूमेंट ऑफ़ एक्सेशन पर हस्ताक्षर हुए।

इस पर हस्ताक्षर करने के बाद मणिपुर की रक्षा, विदेश मामले और संचार भारत के नियंत्रण में आ गए। इसके बाद, मणिपुर राज्य संविधान अधिनियम, 1947 को भारत ने मान्यता नहीं दी। वास्तव में, मणिपुर भारत के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान था। जिस तरह से विदेशी देशों का हस्तक्षेप हो रहा था और मणिपुर का प्रशासन बहुत कमजोर था, इससे भारत में समस्याएँ हो सकती थीं।

मणिपुर का भारत में आधिकारिक रूप से विलय
1949 में, जब मणिपुर के राजा, बोधचंद्र सिंह कुछ काम के लिए शिलांग गए, तो भारतीय सरकार ने उन्हें हाउस अरेस्ट में डाल दिया। फिर उन्होंने उन्हें तब छोड़ा जब उन्होंने भारत के साथ विलय समझौते पर हस्ताक्षर किए। यह समझौता 21 सितंबर 1949 को हस्ताक्षरित हुआ और 15 अक्टूबर 1949 को लागू किया गया।

Manipur Violence :अनुसूचित जनजाति (ST) का विवाद और भारतीय संविधान

मैतेई और अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा
इस समय के दौरान, मैतेई यह कहते थे कि उन्हें जनजातियों का दर्जा दिया गया था, यानी कि वे अनुसूचित जनजाति (ST) श्रेणी में थे। लेकिन बाद में उन्हें इस श्रेणी से हटा दिया गया। मैतेई यह कहते हैं कि वे ST का नया दर्जा नहीं मांग रहे हैं, बल्कि अपने पुराने ST दर्जे को पुनः स्थापित करने की मांग कर रहे हैं। दूसरी ओर, कूकी का कहना है कि मैतेई ने हाल ही में यह कहना शुरू किया है। उनके अनुसार, मैतेई को शुरुआत से ही विशेषाधिकार प्राप्त थे और वे कभी भी ST श्रेणी में नहीं थे।

मणिपुर का भारत में विलय और राज्य का दर्जा
मणिपुर का भारत के साथ विलय हुआ और मणिपुर को पार्ट C राज्य के रूप में रखा गया। पार्ट C राज्य का मतलब था कि एक दीवान या मुख्य आयुक्त मणिपुर का संचालन करेगा। 1956 में मणिपुर को केंद्र शासित प्रदेश (Union Territory) बना दिया गया। और फिर 1972 में मणिपुर को भारत के भीतर पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया।

भूमि सुधार अधिनियम और विभाजन
1972 में मणिपुर भारत का एक राज्य बन गया, लेकिन 12 साल पहले, यानी 1960 में, भारतीय सरकार ने मणिपुर में भूमि सुधार अधिनियम 1960 लाया। इस अधिनियम में यह लिखा गया था कि मणिपुर की घाटी क्षेत्र के लोग पहाड़ियों में जमीन नहीं खरीद सकते थे। लेकिन पहाड़ियों में रहने वाली जनजातियाँ इंफाल घाटी, जहाँ मैतेई लोग रहते थे, में जमीन खरीद सकती थीं। यानी वे मणिपुर में कहीं भी जमीन खरीद सकते थे। जिस तरह से अंग्रेजों ने मणिपुर को पहाड़ियों और घाटी में दो भागों में विभाजित किया था, उसी तरह भारत ने भी मणिपुर को अलग-अलग तरीकों से शासित करके विभाजित किया।

भारतीय संविधान और अनुसूचित जनजाति की सूची
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342 के अनुसार, भारत में कौन ST होगा और कौन नहीं, यह राष्ट्रपति की अधिसूचना द्वारा निर्धारित किया जाएगा। ST की सूची में कौन रखा जाएगा और कौन हटाया जाएगा, इसके लिए 1965 में एक लोहकर समिति का गठन किया गया। इस समिति के अनुसार, पाँच बातें यह निर्धारित करेंगी कि कौन भारत में ST होगा और कौन नहीं:

  • भौगोलिक स्थिति: व्यक्ति किस क्षेत्र में रहता है।
  • सामाजिक स्थिति: व्यक्ति की सामाजिक स्थिति कैसी है।
  • आर्थिक स्थिति: व्यक्ति की आर्थिक स्थिति कैसी है।
  • शैक्षिक स्थिति: व्यक्ति की शैक्षिक स्थिति कैसी है।
  • रोज़गार की स्थिति: व्यक्ति की रोज़गार की स्थिति कैसी है।

Manipur Violence : अनुसूचित जनजाति का विवाद और सशस्त्र विद्रोह

लोहकर समिति और ST का निर्धारण
लोहकर समिति ने पांच मापदंड निर्धारित किए थे: आदिमता, विशिष्टता, अलगाव, निवास और पिछड़ापन। इन मापदंडों के आधार पर यह तय किया गया कि किसे अनुसूचित जनजाति (ST) की श्रेणी में रखा जाएगा और किसे हटाया जाएगा। लोहकर समिति की रिपोर्ट में पृष्ठ 26 पर ST को हटाने का कारण और पृष्ठ 24 पर उन्हें शामिल करने का कारण दिया गया है।

इस रिपोर्ट के अनुसार, पहाड़ियों में रहने वाले कूकी जनजातियों को ST श्रेणी में रखा गया, जबकि मैतेई को ST श्रेणी में नहीं रखा गया। नागा जनजातियों को भी ST श्रेणी में रखा गया।

मणिपुर में सशस्त्र विद्रोह और अलगाववादी समूह
जब मणिपुर का भारत में विलय हुआ, तब मणिपुर में कुछ विद्रोही समूह बने जो भारत के खिलाफ थे। इन समूहों ने हथियार उठाए और भारतीय सरकारी अधिकारियों पर हमला किया। वे मणिपुर को भारत से अलग करना चाहते थे। उनका कहना था कि भारत में शामिल होने से पहले मणिपुर ने अपना संविधान बनाया और चुनाव कराए, लेकिन फिर भी उन्हें हस्ताक्षर करने और मणिपुर को भारत का हिस्सा बनाने के लिए मजबूर किया गया। उनका मानना था कि मणिपुर का भारत में शामिल होना अवैध था।

ये समूह मुख्य रूप से इंफाल घाटी में सक्रिय थे और उनमें ज्यादातर मैतेई लोग शामिल थे। समय के साथ, पहाड़ियों में रहने वाली जनजातियों ने भी अपने समूह बनाए। सबसे पहले, नागा जनजाति ने अपने विद्रोही समूह का गठन किया। नागाओं ने कहा कि वे किसी और की परवाह नहीं करते। सभी नागा क्षेत्रों को मिलाकर, जैसे कि नागालैंड, मणिपुर, असम और म्यांमार, उन्हें एक महान नागालैंड देश बनाना है।

नागा और कूकी विद्रोही समूह
नागा समूह ने “नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड” (NSCN) का गठन किया और इस समूह ने हथियार उठाए और भारतीय सरकार और म्यांमार पर हमला किया। इन्हें देखकर, कूकी जनजातियों ने भी अपना समूह बनाया और कहा कि वे भी अपना कूकी लैंड चाहते हैं। लेकिन कूकी एक अलग देश नहीं बल्कि भारत में एक अलग राज्य चाहते थे, जहाँ सभी कूकी जनजातियाँ बहुसंख्यक हों।

नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (NSCN)

आंतरिक संघर्ष और क्षेत्रीय दावे
समय के साथ, नागा और कूकी आपस में लड़ने लगे क्योंकि दोनों ही अपने-अपने होमलैंड की मांग कर रहे थे। नागाओं का दावा था कि उनका क्षेत्र नागालैंड का हिस्सा होना चाहिए, जबकि कूकी अपने लिए एक अलग राज्य चाहते थे। दोनों के दावे एक दूसरे के क्षेत्रों से ओवरलैप करते थे, जिससे दोनों के बीच संघर्ष बढ़ता गया।

मैतेई और पहाड़ी जनजातियों के बीच संघर्ष
मैतेई जो घाटी में रहते हैं, उनका संघर्ष मुख्य रूप से पहाड़ी जनजातियों के साथ था, जिसमें नागा और कूकी एक हो जाते थे। इस प्रकार, इस क्षेत्र में तीनों जनजातियों के बीच असहमति है। सभी जनजातियाँ अपनी संस्कृति को बिना किसी हस्तक्षेप के संरक्षित करना चाहती हैं और वे एक साथ रहना चाहती हैं।

Manipur Violence : क्षेत्रीय संघर्ष और शांति प्रक्रिया

नागा और कूकी क्षेत्रीय संघर्ष
नागा और कूकी क्षेत्रों का आंशिक रूप से ओवरलैप होता है। इस विवाद के कारण 13 सितंबर 1993 को नागाओं ने कूकी क्षेत्र पर हमला किया, जिसमें 115 कूकी मारे गए। इस दिन को कूकी ब्लैक डे के रूप में जाना जाता है। इस संघर्ष के बाद, हर जनजाति ने अपने-अपने विद्रोही समूह बनाए, जिन्हें उनके हितों के लिए लड़ने वाली सेना के रूप में माना गया।

विद्रोही समूह और भारत सरकार की प्रतिक्रिया
कूकी विद्रोही समूहों में कूकी नेशनल आर्मी (KNA), यूनाइटेड सोशलिस्ट रिवोल्यूशनरी आर्मी, और जोमी रीयूनिफिकेशन फ्रंट शामिल थे। नागा समूहों में नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (NSCN) प्रमुख था। ये समूह समय-समय पर भारत के खिलाफ और आपस में लड़ते रहे। इस स्थिति के कारण भारत सरकार ने मणिपुर को एक अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया। अशांत क्षेत्र घोषित करने के बाद सरकार और सैन्य बलों को संदेह के आधार पर कार्रवाई करने का अधिकार मिल गया, जिससे वहां की स्थिति और अधिक जटिल हो गई।

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शांति प्रक्रिया और असुरक्षा की भावना
2001 में, नागा सेना और NSCN-IM ने भारत सरकार के साथ शांति प्रक्रिया शुरू की। नागाओं द्वारा ग्रेटर नागालैंड की मांग के कारण मणिपुर की पहाड़ी क्षेत्र भी इसमें शामिल हो गया। इससे मणिपुर के मैतेई लोग असुरक्षित महसूस करने लगे, क्योंकि उन्हें डर था कि नागाओं को मणिपुर का हिस्सा मिल जाएगा। इस असुरक्षा के कारण 2001 में मणिपुर में विरोध प्रदर्शन और हिंसा हुई, जिसमें विधानसभा भवन को भी आग के हवाले कर दिया गया और कई लोगों की जानें गईं।

मणिपुर और नागालैंड के बीच तनाव
नागालैंड की स्थिति मणिपुर से भी अधिक तनावपूर्ण है। नागालैंड के खोनोमा गाँव में एक स्मारक पर “नागास आर नॉट इंडियंस” लिखा हुआ है, जो नागालैंड के अलगाववादी दृष्टिकोण को दर्शाता है। नागालैंड में भी अशांत क्षेत्र घोषित किया गया है।

हालिया संघर्ष और स्वायत्तता की मांग
इस घटना के बाद, मैतेई और जनजातियों के बीच संघर्ष बढ़ गया। मैतेई लोगों का मानना है कि मणिपुर में जनसंख्या संरचना बदल रही है और जनजातीय क्षेत्रों में जनसंख्या बढ़ रही है। कूकी जनजातियों ने भी स्वायत्त राज्य की मांग तेज कर दी है। पूर्वोत्तर राज्यों में विभिन्न समूहों के साथ समझौता करना मुश्किल है, क्योंकि जब सरकार एक समूह के साथ शांति वार्ता करती है, तो दूसरे समूह असुरक्षित महसूस करते हैं और अपनी मांगें बढ़ा देते हैं।

त्रिपक्षीय समझौता और शांति प्रयास
2008 में, मनमोहन सिंह की सरकार ने मणिपुर में कूकी समूहों के साथ त्रिपक्षीय समझौता किया। इस समझौते में मणिपुर राज्य सरकार, केंद्र सरकार और कूकी समूह शामिल थे। इसे ‘सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन’ कहा गया। इस समझौते के तहत, 30 विद्रोही समूहों में से 25 समूहों के साथ समझौता किया गया, जिसमें कुल 2266 लोगों की पहचान की गई और 14 शिविर स्थापित किए गए।

मणिपुर में विद्रोह और सरकार की कार्रवाई

कूकी विद्रोही समूहों की स्थिति
2008 से, कूकी विद्रोही समूहों की गतिविधियाँ कैंपों तक सीमित कर दी गईं। उनके हथियार एक स्थान पर बंद कर दिए गए, जिसमें एक चाबी सशस्त्र बलों के पास और दूसरी चाबी कूकी नेताओं के पास रहती थी। 2008 से आज तक, इस समझौते को हर साल बढ़ाया जाता रहा है, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला। कूकी विद्रोही समूहों ने धमकी दी है कि अगर सरकार जल्दी कुछ नहीं करती है, तो वे इस समझौते को तोड़कर कैंपों से हथियार उठा लेंगे।

राजनीतिक स्थिति और बीजेपी का वादा
2017 तक कांग्रेस इस मुद्दे को टालती रही, और फिर बीजेपी की सरकार मणिपुर में आई। 2017 में बीजेपी ने चुनाव जीता और एन. बिरेन सिंह मुख्यमंत्री बने। 2022 में फिर से चुनाव हुए और गृह मंत्री अमित शाह ने मणिपुर में जाकर वादा किया कि अगर बीजेपी फिर से जीतती है, तो 5 साल के अंदर कूकी समस्या का समाधान किया जाएगा। इस वादे के चलते कूकी और मैतेई दोनों ने बीजेपी को वोट दिया और बीजेपी फिर से जीत गई।

मणिपुर की जनसंख्या और मादक पदार्थों का मुद्दा
मणिपुर में मैतेई की जनसंख्या 53% है और पहाड़ी इलाकों के लोगों की तुलना में अधिक है। मुख्यमंत्री एन. बिरेन सिंह खुद भी मैतेई हैं, जिससे उन्हें मैतेई पक्षधर होने के आरोप लगते रहते हैं। मुख्यमंत्री ने कई बार कहा है कि म्यांमार से अवैध रूप से लोग मणिपुर आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि म्यांमार, थाईलैंड, लाओस और चीन के क्षेत्र जिसे गोल्डन ट्रायंगल कहा जाता है, वहाँ बहुत अधिक मादक पदार्थों का व्यापार होता है और मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्र, विशेष रूप से आरक्षित वन, इस खेती के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं।

जनसंख्या वृद्धि और अवैध प्रवासियों का मुद्दा
मणिपुर में जनसंख्या वृद्धि दर 32.46% है, जबकि पूरे भारत में यह दर 24.66% है। पहाड़ी क्षेत्रों में यह वृद्धि दर 100.18% है, जो बहुत असामान्य है। मैतेई कहते हैं कि 1901 में मणिपुर की कुल जनसंख्या का 60% मैतेई थे और 2022 में यह घटकर 49% हो गई है। वहीं, कूकी जनसंख्या 1901 में 1% थी और 2022 में 29% हो गई है। म्यांमार की अस्थिर स्थिति के कारण भी अवैध प्रवास बढ़ रहा है। मणिपुर और म्यांमार की सीमा जटिल पहाड़ों से बनी है, जिससे अवैध प्रवासियों को ट्रैक करना मुश्किल हो जाता है।

मादक पदार्थों और अवैध खेती का मुद्दा
मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया है कि मणिपुर में गिरफ्तार किए गए अधिकांश मादक पदार्थ तस्कर कूकी जनजातियों के हैं। उन्होंने कहा कि कुछ कूकी जनजातियों के लोग 13,121 एकड़ में पोस्ता की खेती कर रहे हैं। कूकी जनजातियों ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि मैतेई जनसंख्या अधिक होने के कारण उन्हें निशाना बनाया जा रहा है।

जंगल सर्वेक्षण और विवाद
फरवरी 2024 में, राज्य सरकार ने खूपम आरक्षित वन और चुराचांदपुर और तेंग्नोपाल जिलों में जंगल सर्वेक्षण का निर्णय लिया। वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए जंगलों का उपयोग और कटाई की गई थी। भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 29 के तहत राज्य सरकार ने इन आरक्षित वन क्षेत्रों पर संपत्ति अधिकार लागू किए। इस सर्वेक्षण का विरोध जोमी छात्र संघ ने किया और वन विभाग के अधिकारियों को निष्कासित कर दिया।

मणिपुर में जनजातीय और मैतेई संघर्ष का विस्तार

वन विभाग की कार्रवाई और जनजातीय विरोध
वन विभाग द्वारा की गई कार्रवाई को कूकी जनजातियों ने अवैध बताया। उनका कहना था कि वन विभाग के पास कोई वैध दस्तावेज नहीं थे और उन्हें कोई पूर्व सूचना नहीं दी गई थी। इसके अलावा, मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 371सी के तहत विशेष दर्जा प्राप्त है। इस अनुच्छेद के अनुसार, पहाड़ी क्षेत्रों के विधायकों की एक समिति बनाई जाती है, जो जल, भूमि और वन संसाधनों की देखभाल करती है। कूकी जनजातियों का आरोप है कि सरकार उनकी उपेक्षा कर अवैध गतिविधियाँ कर रही है।

निष्कासन अभियान और जन आक्रोश
सरकार ने इन विरोधों के बावजूद निष्कासन अभियान जारी रखा और कई घरों को तोड़ा। इससे 200 से अधिक परिवार बेघर हो गए। इसी तरह की स्थिति नगालैंड में भी हुई थी, लेकिन वहां बीजेपी सरकार ने राज्य सरकार को चेतावनी दी थी कि ऐसा करने पर हिंसा हो सकती है, जिसके बाद नगालैंड में निष्कासन अभियान रोक दिया गया। लेकिन मणिपुर में राज्य सरकार ने इसे जारी रखा, आरोप लगाते हुए कि कई ग्रामीण यहाँ मादक पदार्थों का व्यापार कर रहे थे।

मार्च 2023 में कूकी जनजातियों के छात्र संगठनों ने इस अभियान के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया और रैली निकाली। मुख्यमंत्री भी एक कार्यक्रम के लिए रैली कर रहे थे और प्रदर्शनकारी वहाँ पहुंच गए, जिससे हिंसा भड़क गई। इसके बाद कर्फ्यू लगाया गया और मोबाइल सेवाएँ 5 दिनों के लिए बंद कर दी गईं।

कूकी विद्रोही समूहों का पुन: सक्रिय होना
2008 में मनमोहन सिंह द्वारा साइन किए गए ऑपरेशन सस्पेंशन समझौते के तहत 25 कूकी विद्रोही समूहों में से दो समूह – कूकी नेशनल आर्मी (KNA) और जोमी रिवोल्यूशनरी आर्मी ने समझौते का उल्लंघन किया। सरकार ने कहा कि इन दो समूहों के कारण ही हिंसा हो रही है और उन्हें इस समूह से निकाल दिया। इसके बाद, 11 अप्रैल 2023 को इम्फाल घाटी के आदिवासी कॉलोनी में तीन चर्चों को अवैध बताते हुए तोड़ दिया गया, जिससे कूकी जनजातियों में और भी आक्रोश फैल गया।

मैतेई जनजाति की एसटी दर्जा की मांग
2012 से, मैतेई जनजाति एसटी का दर्जा पाने के लिए प्रयासरत रही है। इसके लिए उन्होंने एक समिति बनाई – मणिपुर एसटी डिमांड कमेटी (ST DCM)। उन्होंने राज्यपाल और मुख्यमंत्री को लगातार ज्ञापन सौंपे। इस वर्ष उच्च न्यायालय ने कहा कि मैतेई जनजाति ने 2013 से एसटी दर्जा पाने के लिए कई अनुरोध किए हैं। उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार से कहा कि वे इस पर निर्णय लें और चार हफ्तों के भीतर अनुशंसा दें कि मैतेई जनजाति को एसटी सूची में शामिल किया जाए या नहीं।

संघर्ष का विस्तार
उच्च न्यायालय के इस निर्णय के बाद, मैतेई और कूकी जनजातियों के बीच पुराना तनाव फिर से उभर आया। मैतेई का कहना है कि वे मणिपुर के केवल 10% क्षेत्र में रहते हैं जबकि उनकी जनसंख्या 53% है। वे इस 10% घाटी क्षेत्र में रहते हैं जहाँ मैतेई, गोरखा, मुस्लिम और कूकी सभी रहते हैं। कूकी पूरे मणिपुर में कहीं भी जमीन खरीद सकते हैं, लेकिन मैतेई नहीं कर सकते। उनका कहना है कि भारत के किसी भी कोने से जनजातियाँ मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों में जमीन खरीद सकती हैं, लेकिन मैतेई अपने पूर्वजों की जमीन पर भी नहीं खरीद सकते।

जनसंख्या वृद्धि और आव्रजन का मुद्दा
मैतेई समय-समय पर जनसंख्या वृद्धि का डेटा साझा करते हैं और कहते हैं कि 1901 में मणिपुर की कुल जनसंख्या का 60% मैतेई थे और 2022 में यह घटकर 49% हो गई है। वहीं, कूकी जनसंख्या 1901 में 1% थी और 2022 में 29% हो गई है। वे यह भी कहते हैं कि मणिपुर में जनसंख्या वृद्धि दर सामान्य नहीं है और इस प्रकार की वृद्धि असामान्य है।

जनसंख्या वृद्धि और आव्रजन का मुद्दा

यह स्पष्ट है कि मणिपुर में स्थिति बहुत जटिल है और इसके ऐतिहासिक, राजनीतिक और सामाजिक-आर्थिक आयाम हैं जो मेइतेई और कुकी के बीच तनाव को बढ़ाते हैं। भूमि अधिकार, जातीय पहचान, राजनीतिक प्रतिनिधित्व और आर्थिक असमानता के मुद्दे संघर्ष को समझने के लिए केंद्रीय हैं।

  • भूमि और संसाधन विवाद: इस संघर्ष में मेइती (जो मुख्य रूप से मैदानी इलाकों में रहते हैं) और कुकी (जो मुख्य रूप से पहाड़ियों में रहते हैं) के बीच भूमि स्वामित्व और संसाधन नियंत्रण पर विवाद शामिल हैं। मेइती अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने का तर्क देते हैं, जबकि कुकी को डर है कि अगर मेइती को एसटी के रूप में वर्गीकृत किया गया तो वे अपने भूमि अधिकार खो देंगे।
  • राजनीतिक असंतुलन: बहुसंख्यक आबादी होने और अधिक विकसित मैदानी इलाकों में रहने वाले मेइतेई के पास महत्वपूर्ण राजनीतिक शक्ति है। इससे कुकियों को उनके सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व के बावजूद राजनीतिक रूप से हाशिए पर रखने के आरोप लगे हैं।
  • कानूनी और संवैधानिक मुद्दे: मैतेई लोगों द्वारा एसटी दर्जे की मांग का कुकियों ने संवैधानिक मानदंडों और लोकुर समिति की सिफारिशों का हवाला देते हुए विरोध किया है। छठी अनुसूची में शामिल न होने से, जो आदिवासी क्षेत्रों के लिए स्वायत्त परिषदों की अनुमति देती है, कुकियों के बहिष्कार की भावना को और बढ़ा देती है।
  • हिंसा और विद्रोह: संघर्ष हिंसा में बदल गया है, दोनों पक्षों ने खुद को हथियारबंद कर लिया है और विद्रोही समूह भी इसमें शामिल हो गए हैं। कानून प्रवर्तन के टूटने, पुलिस के जातीय आधार पर एकजुट होने से स्थिति और खराब हो गई है, जिससे व्यापक हिंसा, हथियारों की लूट और नागरिकों का विस्थापन हुआ है।
  • सामाजिक और मानवीय प्रभाव: हिंसा के गंभीर मानवीय परिणाम हुए हैं, जिनमें जानमाल की हानि, लोगों का विस्थापन और संपत्ति और व्यवसायों को नुकसान शामिल है। फर्जी तस्वीरों जैसी गलत सूचना के प्रसार ने सांप्रदायिक तनाव और हिंसा को और बढ़ा दिया है।
  • कानूनी प्रतिक्रियाएँ और अशांति: पहाड़ी क्षेत्र परिषदों को सशक्त बनाने के लिए मणिपुर एडीसी विधेयक 2021 जैसे प्रयासों को राज्य सरकार द्वारा नजरअंदाज कर दिया गया है, जिससे आगे अशांति और विरोध प्रदर्शन हुआ है। न्यायपालिका की भूमिका, विशेष रूप से मेइतीस के लिए एसटी दर्जे पर उच्च न्यायालय का निर्णय भी विवादास्पद और विभाजनकारी रहा है।
  • कानूनी और राजनीतिक नतीजा: सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप करते हुए मेइतीस के लिए एसटी(ST) दर्जे पर उच्च न्यायालय के आदेश को असंवैधानिक घोषित कर दिया। इससे जातीय और राजनीतिक विवादों से पहले से ही बढ़ा हुआ तनाव और बढ़ गया।

दंगे भयावह घटनाओं में बदल गए, जिसमें एक महिला को सार्वजनिक रूप से अपमानित किए जाने का वायरल वीडियो भी शामिल है, जिससे राष्ट्रीय आक्रोश और निंदा हुई। बाद में गिरफ्तारियों के बावजूद, न्याय धीमा और अपर्याप्त था।

हिंसा को रोकने में राज्य सरकार की विफलता के कारण बड़े पैमाने पर विश्वास की हानि हुई। मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग को मिश्रित प्रतिक्रिया मिली, जो शासन और जवाबदेही की विफलता को उजागर करती है।

आरोप सामने आए कि सुरक्षा बल पक्ष ले रहे थे, जिससे अविश्वास गहरा रहा था। सुगनू में पुलिस और सेना के बीच टकराव जैसी घटनाओं ने इस क्षेत्र को और अस्थिर कर दिया।

केंद्र सरकार ने हिंसा के मूल कारणों और प्रसार की जांच के लिए एक समिति का गठन किया, जो संकट की गंभीरता की मान्यता का संकेत है लेकिन अनिश्चित परिणामों के साथ।

संघर्ष का मिजोरम जैसे पड़ोसी राज्यों में फैलने से स्थिति और जटिल हो गई है, जिससे बड़े पैमाने पर पलायन और समुदायों के बीच खतरे पैदा हो गए हैं।

Manipur Violence

यह संकट पूर्वोत्तर भारत में शांति की नाजुकता और ऐतिहासिक शिकायतों, सामाजिक-आर्थिक असमानताओं और राजनीतिक प्रतिनिधित्व को संबोधित करने के लिए निरंतर प्रयासों की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है।

यह विस्तृत अवलोकन मणिपुर की वर्तमान स्थिति की एक परेशान करने वाली तस्वीर पेश करता है, जो आगे की स्थिति को रोकने और शांति बहाल करने के लिए व्यापक और समावेशी समाधानों की तत्काल आवश्यकता पर बल देता है।
मणिपुर का यह विवाद बड़े पैमाने पर देश को भी सोचने पर मजबूर कर दिया है। इस राज्य की स्थिति अत्यंत चिंताजनक है, क्योंकि यहां की जनता इस असुरक्षितता और हिंसा के बीच अपनी रोजमर्रा की ज़िंदगी जी रही है।

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