EVM Controversy:लोकतंत्र की कहानी में मसाला

भारत के राजनीतिक मैदान में ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) की प्रसंगिता पर चर्चा लंबा समय से चली आ रही है। विपक्ष, मुख्य रूप से कांग्रेस, मोदी सरकार से ईवीएम को हटाने की मांग कर रहे हैं। मोदी सरकार पर ईवीएम के माध्यम से वोट की हेरफेरी के आरोप भी लगाए जा रहे हैं। लोक सभा चुनाव के समय, ईवीएम पर विपक्ष के तीव्र टिप्पणियाँ और सवाल उठ रहे हैं, जो की राजनीतिक के माहौल को और उग्रवादक बना रहे हैं।

EVM Controversy

कांग्रेस, इस मुद्दे पर सीधा निशाना साधते हुए, मोदी सरकार को घोषित करती है। कांग्रेस के महासचिव जय राम रमेश ने कहा, “चुनाव प्रक्रिया में ईवीएम का बेहतर उपयोग एक महत्वपूर्ण मुद्दे बन गया है। भारत गणराज्य की प्रमुख गठबंधन की पार्टियाँ 2023 के जून महीने से ही चुनाव आयोग से मिलने का समय मांग रही हैं। वीवीपीएटी के उपयोग को बढ़ाकर 100% तक पहुंचाने की मांग नहीं करना, देश के मतदाताओं के साथ घोर अन्याय है।”

सुप्रीम कोर्ट के 8 अप्रैल 2019 को ईवीएम और वीवीपीएटी पर्ची के मिलन का दायरा बढ़ाने का संदेश देते हुए चुनाव आयोग से वीवीपीएटी पर्ची वाले बूथों की संख्या बढ़ाने को कहा गया था। इस मामले का केस नंबर WP (C-273-2019) है और मामला एन-चंद्रबाबू नायडू के नाम से भारत संघ के द्वारा दर्ज किया गया है। चंद्रबाबू नायडू, जो कभी हाई-टेक मुख्यमंत्री के रूप में प्रसिद्ध थे, वह उस समय आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री थे।

इसके साथ ही, जय राम ने चंद्रबाबू नायडू के एनडीए पर शामिल होने पर उम्मीद जताई है कि अब वह चुनाव आयोग को अपने पूर्व सहयोगियों के साथ मिलने का समय देने के लिए मना सके। इसके अलावा, कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने पीएम मोदी के चार पर के दावे पर तांज करते हुए लिखा, “पीएम मोदी के लोक सभा चुनाव के नतीजों पर इतना आश्वासन क्यों है कि उन्हें जन आक्रोश की चिंता नहीं है? इस प्रश्न का एक ही उत्तर है – उन्हें ईवीएम पर भरोसा है, वह उनको चिंता देगी, जनता भले ही नाराज हो।”

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लोकतंत्र को बचाने के लिए, ईवीएम हटाना एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। यह मुद्दे पर राजनीतिक दलों का एकजुट प्रयास होना चाहिए, ताकि भारत के मतदाताओं की असली इच्छा का समर्थन हो सके और राजनीति में विश्वास बना रहे।

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